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OSHO
NEVER BORN NEVER DIED,
ONLY VISITED THIS PLANET EARTH
BETWEEN
11 DECEMBER 1931 AND 19 JANUARY 1990

I would like more and more writers, poets, film makers to steal as much as they can, because truth is not my property, I am not its owner. let it reach in any way, in anybody's name, in any form, but let it reach. Beyond Psychology#3 Q#2 : Osho

If you really want to know who I am, you have to be as absolutely empty as I am. Then two mirrors will be facing each other, and only emptiness will be mirrored: two mirrors facing each other. But if you have some idea, then you will see your own idea in me."

"Only that which cannot be taken away by death is real. Everything else is unreal, it is made of the same stuff dreams are made of." ~OSHO♥

Monday, 22 September 2014

Breathe Watching Meditation

  1. Watching the Breath

Breath-watching is a method that can be done anywhere, at any time, even if you have only a few minutes available. You can simply watch the rise and fall of your chest or belly as the breath comes in and goes out, or try this version….

Step 1: Watch the In Breath

Close your eyes and start watching your breath. First, the inhalation, from where it enters your nostrils, right down into your lungs.

Step 2: Watch the Gap That Follows

At the end of the inhalation there is gap, before the exhalation starts. It is of immense value. Watch that gap.

Step 3: Watch the Out Breath

Now watch the exhalation.

Step 4: Watch the Gap That Follows

At the end of the exhalation there is a second gap: watch that gap. Do these four steps for two to three times – just watching the breathing cycle, not changing it in anyway, just watching the natural rhythm.

Step 5: Counting In Breaths

Now start counting: Inhalation – count 1 (don’t count the exhalation), inhalation – 2, and so on, up to 10. Then count from 10 back to 1. Sometimes you may forget to watch the breath or you may count beyond 10. Then start again, at 1.

“These two things have to be remembered: watching, and particularly the gaps at the top and the bottom. The experience of that gap is you, your innermost core, your being. And second: go on counting, but not more than up to 10; and come back again to 1; and only count the inhalation.

These things help awareness. You have to be aware, otherwise you will start counting the exhalation, or you will go over 10.

If you enjoy this meditation, continue it. It is of immense value.”

♥ Osho ♥

Saturday, 6 September 2014

ध्यान के लिए सातत्य अनिवार्य है - ओशो



जितना गहरा सातत्य होगा, उतने ही अनुभव की प्रगाढ़ता होगी। अक्सर ऐसा हो जाता है कि दो दिन किया, एक दिन नहीं किया, तो आप फिर उसी जगह खड़े हो जाते हैं, जहां आप दो दिन करने के पहले थे। कम से कम तीन महीने के लिए तो एकदम सातत्य चाहिए। जैसे हम कुआं खोदते हैं, एक ही जगह खोदते चले जाते हैं। आज एक जगह खोदें, फिर दो दिन बंद रखें, फिर दूसरे दिन दूसरी जगह खोदें, फिर चार दिन बंद रखें, फिर कहीं खोदें। वह कुआं कभी बनेगा नहीं। वह बनेगा नहीं। जलालुद्दीन रूमी एक दिन अपने विद्यार्थियों को लेकर जो ध्यान सीख रहे थे, सूफी फकीर था, एक खेत में गया। और उन विद्यार्थियों से कहा, जरा खेत को गौर से देखो! वहां आठ बड़े-बड़े गड्ढे थे। उन विद्यार्थियों ने कहा, पूरा खेत खराब हो गया। यह मामला क्या है? रूमी ने कहा, खेत के मालिक से पूछो। उस मालिक ने कहा कि मैं कुआं खोद रहा हूं। पर उन्होंने कहा कि तुमने आठ गड्ढे खोदे, अगर तुम एक ही जगह इतनी ताकत लगा देते आठ गड्ढों की, तो न मालूम कितने गहरे कुएं में पहुंच जाते। तुम यह कर क्या रहे हो?

उसने कहा कि कभी काम पिछड़ जाता है, बंद हो जाता है। फिर मैं सोचता हूं, पता नहीं उस जगह पानी हो या न। फिर दूसरी जगह शुरू करता हूं। वहां भी नहीं मिलता, फिर तीसरी जगह शुरू करता हूं, फिर चौथी जगह। आठ गड्ढे तो खोद चुका, लेकिन कुआं अब तक नहीं खुदा है।

रूमी ने कहा कि देखो, तुम भी अपने ध्यान में कुआं खोदते वक्त खयाल रखना। यह किसान बड़ा कीमती है। तुम भी ऐसी भूल मत कर लेना। इसने ज्यादा नुकसान नहीं उठाया, केवल खेत खराब हुआ। तुम ज्यादा नुकसान उठा सकते हो, पूरा जीवन खराब हो सकता है।

अक्सर ऐसा होता है, अक्सर ऐसा होता है, आप में से कई ने न मालूम कितनी बार ध्यान शुरू किया होगा, फिर छोड़ दिया। फिर शुरू करेंगे, फिर छोड़ देंगे। नहीं; कम से कम तीन महीना बिलकुल सतत। और तीन महीना क्यों कहता हूं? क्या इसलिए कि तीन महीनों में सब कुछ हो जाएगा?

जरूरी नहीं है! लेकिन एक बात पक्की है कि तीन महीने में इतना रस जरूर आ जाएगा कि फिर एक भी दिन बंद करना असंभव है। तीन महीने में हो भी सकती है घटना। नहीं होगी, ऐसा भी नहीं कहता हूं। तीन दिन में भी हो सकती है, तीन घंटों में भी, तीन क्षण में भी हो सकती है। आप पर निर्भर करता है कि कितनी प्रगाढ़ता से आपने छलांग मारी। लेकिन तीन महीना इसलिए कहता हूं कि मनुष्य के मन की कोई भी गहरी पकड़ बनने के लिए तीन महीना जरूरी सीमा है।
आपको शायद पता न हो, अगर आप नये घर में रहने जाएं तो कम से कम तीन सप्ताह लगते हैं आपको इस बात को भूलने में कि वह नया घर है। वैज्ञानिक बहुत प्रयोग किए हैं, तब वे कहते हैं कि इक्कीस दिन कम से कम लग जाते हैं, पुरानी चीज बनाने में नई चीज को। नये मकान में आप सोते हैं पहले दिन तो नींद ठीक से नहीं आती। वैज्ञानिक कहते हैं कि नींद की नार्मल स्थिति लौटने में कम से कम इक्कीस दिन, तीन सप्ताह लग जाते हैं।

जब एक मकान बदलने में तीन सप्ताह लग जाते हों, तो चित्त बदलने में तीन महीने को बहुत ज्यादा तो नहीं कहिएगा न! तीन महीने बहुत ज्यादा नहीं हैं। बहुत थोड़ी सी बात है। तीन महीने सतत, इसका संकल्प लेकर जाएं कि तीन महीने सतत करेंगे। नहीं लेकिन बड़ा मजा है! कोई कहता है कि नहीं, आज थोड़ा जरूरी काम आ गया। कोई कहता है, आज किसी मित्र को छोड़ने एयरपोर्ट जाना है। कोई कहता है, आज स्टेशन जाना है। कोई कहता है, आज मुकदमा आ गया। लेकिन न तो आप खाना छोड़ते हैं, न आप नींद छोड़ते हैं, न आप अखबार पढ़ना छोड़ते हैं, न आप सिनेमा देखना छोड़ते हैं, न सिगरेट पीना छोड़ते हैं। जब छोड़ना होता है तो सबसे पहले ध्यान छोड़ते हैं, तो बड़ी हैरानी होती है। क्योंकि और भी चीजें छोड़ने हैं आपके पास। और भी चीजें छोड़ने की हैं, उनमें से कभी नहीं छोड़ते। तो ऐसा लगता है कि जिंदगी में यह ध्यान और परमात्मा, हमारी जो फेहरिस्त है जिंदगी की, उसमें आखिरी आइटम है। जब भी जरूरत पड़ती है, पहले इस बेकार को अलग कर देते हैं, बाकी सब को जारी रहने देते हैं।

नहीं; ध्यान केवल उन्हीं का सफल होगा, जिनकी जिंदगी की फेहरिस्त पर ध्यान नंबर एक बन जाता है। अन्यथा सफल नहीं हो सकता है। सब छोड़ दें, ध्यान मत छोड़ें। एक दिन खाना न खाएं, चलेगा; थोड़ा लाभ ही होगा, नुकसान नहीं होगा। क्योंकि चिकित्सक कहते हैं कि सप्ताह में एक दिन खाना न खाएं तो लाभ होगा। एक दिन दो घंटे न सोएं तो बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। कब्र में सोने के लिए बहुत घंटे मिलने वाले हैं।

ओशो ध्यान दर्शन /10